आत्म -कथ्य
मैं कभी किसी मंच पर या मुशायरे में शामिल
नहीं हुई,
न ही
किसी के सामने ग़ज़ल कही है। लंबी अस्वस्थता
से उत्पन्न शारीरिक विषमताओं के कारण बाहरी दुनिया से भी लगभग कटी हुई हूँ।
प्रकृति की सुंदरतम गोद और वेब की दुनिया ही मेरा सृजन-संसार है। मेरी समस्त
रचनाएँ प्रकृति से संवाद करते हुए और वेब पर पढ़ते हुए ही तैयार हुई हैं।
पूर्णिमा जी की वेब पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ के उप-संपादक पद
पर कार्यभार संभालने के बाद उन्होंने मुझसे ग़ज़ल
का व्याकरण सीखने का अनुरोध किया। मुझे उर्दू का ज्ञान बिलकुल नहीं था और
शायरी में कोई रुचि नहीं थी लेकिन पूर्णिमा जी का आग्रह मेरे लिए गुरु के आदेश
जैसा ही था,
और
सम्पादन के लिए सीखना आवश्यक भी था अतः स्वयं को मन से तैयार कर लिया। छंद विद्या
का काफी ज्ञान समूह के विद्वानों से हो चुका था। अभिव्यक्ति समूह के ही प्रतिष्ठित
विद्वान आदरणीय शरद जी के मार्गदर्शन में शुरुवात हुई। उन्होंने पूरे स्नेह और
सब्र के साथ सीखने में मेरी हर संभव सहायता की। मैंने ग़ज़ल को छंद की एक विधा मानकर
अपनी भावनाओं को आकार दिया है। लगातार अभ्यास और मेहनत से लिखते हुए लगभग एक वर्ष
में ही ग़ज़ल का संकलन तैयार हो गया जो अब आपके हाथों में है।
मुझे
आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि यह संग्रह आपको अवश्य पसंद आएगा।
-कल्पना रामानी
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समीक्षा-शरद तैलंग
संत महात्माओं के प्रवचन जैसी हैं ये ग़ज़लें -शरद तैलंग
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समीक्षा-शरद तैलंग
संत महात्माओं के प्रवचन जैसी हैं ये ग़ज़लें -शरद तैलंग
मेरी लिये यह अत्यंत सुखद बात है कि कल्पना जी का ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हुआ है, इसका प्रमुख कारण शायद यह भी है कि मैं इनकी ग़ज़ल यात्रा का सहयात्री या दर्शक रहा हूँ। जिस प्रकार कोई विमान पृथ्वी से उड़ान भरने के लिये पहले मंथर फिर तेज़ गति से हवाई पट्टी पर चलता है फिर एकाएक ऊपर उठते हुए आकाश को छूने लगता है, कल्पना जी की रचना प्रक्रिया भी कुछ इसी तरह की है जिसे हम लोग ज़मीन से उठकर आसमान को छूता हुआ देखते जा रहे हैं।
इनकी ग़ज़लों में विभिन्न विषयोँ की भरमार है जो इनकी समाज, देश, धर्म, राजनीति, पाखण्ड, अराजकता, भक्ति भाव, प्रदूषण, पर्यावरण, मानवीय रिश्तोँ, पर्व और न जाने कितने अनेक विषयोँ पर पाठकों को एक ज्ञान प्रदान करने वाली पाठशाला के समान प्रतीत होती है, जिन्हेँ पढकर ऐसा लगता है कि साहित्य अर्थात सबके हित का असली मंत्र इन ग़ज़लों में ही समाया है। इनकी ग़ज़लों के किसी शे’र को यहाँ उद्धृत करना मेरे लिये अत्यंत कठिन कार्य प्रतीत हो रहा है क्योंकि ग़ज़लोँ मे इतनी विविधता है कि मुँह से सिर्फ ‘वाह वाह’ ही निकल सकती है। आप इन्हें कोई भी भले वह नीरस ही क्यों न हो, विषय दे दीजिये उस पर इनकी कलम एक सरस काव्य रचना का निर्माण कर देती है।
अत्यंत अल्प समय में ग़ज़ल जैसी विधा की बारीकियों को आपने जिस प्रवीणता से आत्मसात किया तथा उन्हें समझा है वैसी निपुणता तो आज के दौर के कई जाने माने ग़ज़लकारों में भी नहीं पाई जाती है। यह बात सिर्फ इनकी ग़ज़लों के बारे में ही नहीं बल्कि साहित्य के अन्य विविध छंदों जैसे, गीत, नवगीत, दोहे, कुण्डलिया आदि पर भी इनकी कलम कमाल करती है।
इनकी रचनाओँ मेँ भाषा के प्रयोग, छन्दों के कथ्य तथा शिल्प पर पैनी पकड, ज्ञान वर्धक एवं सहज भाषा, तथा उद्देश्यपूर्ण विषय पाठकोँ को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता रखते हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि हम किसी संत का प्रवचन सुन रहे हैं। मेरी इस धारणा की गवाही देने के लिये इनकी ग़ज़लोँ के दो शे’र ही पर्याप्त हैं।
“शुद्ध भावोँ से रचें, कोमल ग़ज़ल के काफिये,
क्षुब्ध मन के पंक में खिलते कमल पाएँगे आप”।
“बुनें ऐसे सरस नग्में, गुने दिल से जिन्हें दुनिया
सुनाएँ कुछ ग़ज़ल ऐसी, कि चर्चा अंजुमन में हो”।
आपके इस संकलन पर मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ एवं आपकी यह यात्रा निरंतर समाजोपयोगी बनी रहे ऐसी कामना है।
शरद तैलंग
गायक, ग़ज़लकार, व्यंग्यकार
240 माला रोड (हाट रोड) कोटा जँ 324002 (राजस्थान) 09829903244
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कल्पना रामानी एक चमत्कार
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समीक्षा पूर्णिमा वर्मन
कल्पना रामानी एक चमत्कार
कल्पना रामानी जी इंटरनेट और वेब का एक जीता जागता चमत्कार हैं। अगर इंटरनेट न होता तो हम इस चमत्कार से वंचित रह जाते। एक ऐसा चमत्कार जो देखते ही देखते एक सामान्य गृहणी को जानी-मानी रचनाकार के रूप में हम सबके सामने प्रकट कर दे। ऐसा कहना उनके अपने श्रम को नकारना नहीं है, बेशक उनमें प्रतिभा, लगन और मेधा का बीज कहीं छुपा था जो इंटरनेट की विभिन्न धाराओं से सिंचकर पल्लवित हो गया।
जिस तेजी से उन्होंने छंद और लय को समझा, आत्मसात किया और कविताओं में रचा, वह आश्चर्य चकित कर देने वाला था। गीत, दोहे, कुंडलिया और फिर ग़ज़ल, वे हर विधा की बारीकियों में निष्णात होती चली गईं।
आज वे अभिव्यक्ति एवं अनुभूति के संपादक मंडल का हिस्सा हैं और उनके हौसलों की उड़ान देश विदेश में पहुँच जाने वाली है। उनके शिल्प और संवेदना पर बहुत कहने की आवश्यकता नहीं क्यों कि वह आपके हाथों में है। रचना का जादू मन मोहे तो फिर कहने को कुछ बचता नहीं। उनका सान्निध्य अपने आप में एक उपहार है। उनकी रचनाओं के द्वारा यह उपहार सभी पाठकों तक पहुँचे। यह जादू बना रहे और नये नये चमत्कार हमें देखने को मिलें यही मंगलकामना है।
पूर्णिमा वर्मन
संपादक अभिव्यक्ति / अनुभूति
शारजाह
शारजाह
2 comments:
बहुत सुन्दर संग्रह है आपकी निष्ठा और लगन ने चमत्कार किया है,उम्र किसी की मोहताज नहीं होती है,
आप सभी की प्रेरणा है, उम्र के इस पड़ाव पर आपनेऊंचाईयों की एक लम्बी दूरी तय की है, सफलता का एक युग बनाया है, आपकी सरल सहज अभिव्यक्ति ह्रदय को रोमांचित करती है, अनन्त बधाई शुभकामनाएँ दीदी। शब्द अमर रहेंगे, आपके और भी संग्रह आये यही कामना है। सस्नेह - शशि पुरवार
बहुत सुन्दर ....रमानी जी को गजल संग्रह प्रकाशित होने पर हार्दिक बधाई!
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